दिल में बैठाया करता हूँ
ज्वाला मेरी क्षीण नहीं
मैं खुद को मंद रखा करता हूँ
धीमे-धीमे जलता हूँ,
खुद में स्वच्छन्द जिया करता हूँ।
सच्चे दिल के लोगों को
दिल में बैठाया करता हूँ,
सच्चे मित्रों की महफ़िल में
मैं प्रेम लुटाया करता हूँ।
ज्वाला मेरी क्षीण नहीं
मैं खुद को मंद रखा करता हूँ
धीमे-धीमे जलता हूँ,
खुद में स्वच्छन्द जिया करता हूँ।
सच्चे दिल के लोगों को
दिल में बैठाया करता हूँ,
सच्चे मित्रों की महफ़िल में
मैं प्रेम लुटाया करता हूँ।
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बहुत खूब, अति उत्तम रचना
“सच्चे दिल के लोगों को दिल में बैठाया करता हूँ,सच्चे मित्रों की महफ़िल में मैं प्रेम लुटाया करता हूँ।”
कवि सतीश जी की बहुत ही सुन्दर रचना, सच्चे लोग ही सच्चे लोगों की कद्र करते हैं वरना सच्चाई और सरल स्वभाव देख कर कुछ लोग लाभ उठाने पहुंच जाते हैं। वो सच्ची मित्रता नहीं होती है । वो मात्र मौका परस्ती होती है ।जिससे , कवि ने अपनी कविता के माध्यम से दूर ही रहने को बोला है ।और सच्चे लोगों के प्रति सम्मान और प्रेम दर्शाया है । लाजवाब , काबिले तारीफ़ रचना
अतिसुंदर भाव अतिसुंदर रचना
वाह सर बहुत सुंदर 👌👌👌👌
Bahut sundar rachana