दीवानगी का आलम

दीवानगी का आलम कुछ यूं है
जिधर भी देखती हूँ मैं
लगता है बस तू है
कितनी भी कोशिश कर लूं
मैं तुझे भूल जाने की
पर मेरी तो हर साँस में
मौजूद तू है…

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Responses

  1. कवि प्रज्ञा जी की इस कविता में प्रेम तत्व की प्रधानता है। प्रेम शब्द अपने आप में जितना सरल और सहज दिखाई देता है, उस पर कविता लिखना उतना आसान नहीं है। लेकिन प्रज्ञा जी की उपरोक्त पंक्तियाँ पाठक को रेशमी रूमानियत में सहज ही लपेट लेने में सक्षम दिखाई देती हैं।
    भाव प्रधान इन पंक्तियों में प्रयुक्त सरल भाषा कथ्य को पाठक पर पहुँचाने में पूरी तरह सक्षम है।

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