दुःख
मैं हमेशा दुःख से कतराती रही,
इसे दुत्कारती रही
मगर ये दुःख हमेशा ही मिला है
मुझसे बाहें पसारे…!!
मैं भटकती रही चेहरे दर चेहरे
सुख की तलाश में…
और वो हमेशा रहा एक परछाई की तरह
जो दिखती तो है मगर क़भी कैद
नही होती हाथों में…!!
दुःख बारिशों में उगी घास की तरह है जिसे
हज़ार बार उखाड़ कर फेंको मगर ये उग
ही जाता हैं दिल की जमीं पर..!!
सुख ने हमेशा छला है मुझे एक
मरीचिका की तरह…
मगर दुःख ने मुझे सिखाया है स्थायित्व,
लाख ठोंकरों के बाद भी
दामन थामे रहना…!!
©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’
(09/11/2020)
सुख और दुख के बारे मे व्यक्त करती हुई हृदय स्पर्शी रचना ।
सुख-दुख एक अनुभूति है जो व्यक्ति, वस्तु और समय के सापेक्ष होती है। वस्तुत: सुख या दुख की निरंतरता नहीं होती है। सुख और दुख तो धूप-छाया की तरह सदा इंसान के साथ ही रहते हैं।