Categories: हिन्दी-उर्दू कविता
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नवसंवत्सर को नज़राना
फाल्गुन की ब्यार में, कोयल की थी कूक गिरते हुए पत्तों की सरसराहट उर में उठाती थी हूक॥ जीवंत हो उठी झंझाएँ मानो कुछ कहती…
नज़राना क्या दूँ
नज़राना क्या दूँ ,दोस्त तेरी दोस्ती का हक़ अदा कैसे करूँ ,दोस्त तेरी दोस्ती का कहने को अल्फ़ाज़ कुछ इस तरह है मौजूँ न छूटे…
मेरे दिल का नज़राना
कभी मायूस होती हूँ कभी बेचैन होती हूँ मगर तेरी मोहब्बत में डूबी दिन-रैन होती हूँ, कभी बातें कभी यादें कभी तन्हाई में तुझको भुलाकर…
प्रा:त काल में सुन्दर नज़राना
हरी दूब पर सुबह सवेरे, किस के बिखर गए हैं मोती। किस जौहरी का लुट गया है, देखो सुबह-सुबह खजाना। पुष्प और पल्लव सब मुस्काए,…
जलता रहेगा रावण यूं ही आखिर कब तक?
देखते है सभी जलते रावण को आग की विषम लपटो कों जिनमें फ़टाकों के चिन्गारियों के बीच बेचारा रावण जल रहा है खाक हो…
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