निश्चय
आज सवेरे ही मैने निश्चय किया
मन में शत्रुता संभाल अब न रखूगी
मेरे नज़र से जो भी मेरे दोषी हैं
उनके दोष मन से निकाल देखुगी ।
खुद को कलुषित करने वाले
अंध विचारों से मुँह मोङूगी
अपने ध्यान से हटा,
नासूर जख्मो को छोङूगी ।
पर अपने निश्चय पथ पर
क्या, कितनी दूर, कैसे बढ़ पाऊँगी
उन भरे जख्मो के निशां से
कैसे, कबतक, मुँह मोङूगी ।
सुंदर अभिव्यक्ति
यह दो बार प्रकाशित हो गया है
हैंग होने की वज़ह से
सुंदर
सुन्दर भाव
बहुत सुन्दर भावाभिव्यंजना, और मन के संकल्प का चित्रण करती हुई बेहतरीन रचना।