Categories: हिन्दी-उर्दू कविता
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खाकी – खद्दर पहने हुये , इंसान बिकने लगे
खाकी – खद्दर पहने हुये , इंसान बिकने लगे कोडियों में यहाँ लोगो के,ईमान बिकने लगे ।। कही मुर्दे तो,कही आज शमशान बिकने लगे, चदरों…
रिश्तों के बाजार में अब तो नाते बिकते हैं ।
रिश्तों के बाजार में अब तो नाते बिकते हैं । मात-पिता को छोड़ अब वह सुत प्यारा, अब तो सास श्वसुर के पास रहते हैं…
बिकने दो! शराब अभी इस गाँव में…
बिकने दो! शराब अभी इस गाँव में। अभी भी कुछ बच्चे स्कूल जाते हैं घर आकर क ख ग घ गाते हैं। लेकिन कुछ बच्चे…
मैं बस्तर हूँ
दुनियाँ का कोई कानून चलता नहीं। रौशनी का दिया कोई जलता नहीं। कोशिशें अमन की दफन हो गयी हर मुद्दे पे बंदूक चलन हो गयी॥…
दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34
जो तुम चिर प्रतीक्षित सहचर मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष तुम्हे होगा निश्चय ही प्रियकर बात बताता हूँ। तुमसे पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…
Bhaut khoob kaha apne
Nice
Good
वाह