फासलों के शूल
एक ज़माने से तेरी तस्वीर लिये बैठे हैं_ तुमने फासलों पर शूल चढ़ा रखे हैं जब भी नज़दीक आते हो दिल में हमारे चुभते बहुत…
एक ज़माने से तेरी तस्वीर लिये बैठे हैं_ तुमने फासलों पर शूल चढ़ा रखे हैं जब भी नज़दीक आते हो दिल में हमारे चुभते बहुत…
वो तरस रहा था माँ की ममता बाबा के दुलार को_ मगर तकदीर में अनाथ होना था सड़क उसकी बिछौना था_ पल-पल हर शख्स में…
वो तरस रहा था माँ की ममता बाबा के दुलार को_ मगर तकदीर में अनाथ होना था सड़क उसकी बिछौना था_ पल-पल हर शख्स में…
हर पहर गुज़र जाता हैं छूकर मुझे एक अन्जाना सा_ हम ज़िन्दगी थामकर तेरे ही ख्वाबों को तराशते रहते हैं_ तु अन्जान सही मुझसे ज़िंदा…
सब एहसास दफ़न हो गये_ जब वो पहलू में किसी के गुमराह हो गये हम ज़िंदा थे..कयामत की जूदाई आई और हम कफ़न हो गये_…
मंत्र मुग्ध हैं यशोदा देख , अठखेलियाँ घनश्याम की_ पाकर नंद भी उमंग से धरणी पर , नृत्य करते दुलार करते श्याम की_ शताब्दियाँ भी…
मोड़ दे जो पाणी की लकीरें, हैं वो गुरू ईश्वरीय वासव अद्भुत महान_ तिमिर भी मयूख हो लेखन करें, गुरु हैं वो ग्रंथ कगार_ अस्तित्व…
लफ़्ज़ बिकते हैं इमान बिकते हैं जब बिकने पर आये तो क्या-क्या बिकते हैं ज़माने में__ एक पाक़ दिल पिन्हां सा हैं जो दुनिया की…
उसकी बेवफ़ाई पर हंसी आती हैं तो तरस भी__ अभी अन्जान हैं वो मोहब्बत से..दिवाना कुछ इस कदर हैं समझ लेता हैं वो हर पत्थर…
उसकी बेवफ़ाई पर हंसी आती हैं तो तरस भी__ अभी अन्जान हैं वो मोहब्बत से..दिवाना कुछ इस कदर हैं समझ लेता हैं वो हर पत्थर…
उसकी बेवफ़ाई पर हंसी आती हैं तो तरस भी__ अभी अन्जान हैं वो मोहब्बत से..दिवाना कुछ इस कदर हैं समझ लेता हैं वो हर पत्थर…
ऐसा कोई लम्हा नहीं गुज़रता जब सांसों से मेरी उसकी यादें ना गुज़रती हो__ ये बात और हैं एहसासों से मेरे वो अंजान हैं मगर…
ज़िन्दगी की तारीख नहीं होती_ वरना हर तारीख पर फ़क़त ज़ख़्मों का हिसाब होता शाद-ए-लम्हें कहाँ खर्च हो गये कभी हिसाब ही नहीं मिलता_ -PRAGYA-
जिनके यार खुदा से हो _ उन्हें जहाँ तो क्या मौत से भी खौफ कहाँ से हो_ -PRAGYA-
ज़िन्दगी कितनी खरोंचे दोगी_? अब तो रूह का रेशा-रेशा भी छील गया_ -PRAGYA-
दूरियों में तुझसे.. अजीब सा हाल हो गया हैं इस दिल का भी_ जैसे इक नाकाम सा बुत पड़ा हो आती जाती सड़कों पर_ -PRAGYA-
अब साँसे भी सोचकर लेती हूँ___ कहीं ख़याल तेरे महकने ना लगे जो ख्वाब तुमने तोड़े थे कहीं दिल फिर उसे बुनने ना लगे___ -PRAGYA
जर्रा को आफ़ताब बना दे वो नज़र मेरे दोस्त की हैं_ मैं इतनी क़ाबिल तो नहीं की इंसा के लिबास में फरिश्ता नज़र आऊं_ बना…
तन्हा-तन्हा बौराई सी फिरती हूँ हुज़ूम में भी_ कहकशाँ लगाती हूँ अपनी ही विरानियत में कुछ हाल-ए-बयां इश्क़ का इस तर्ज़ भी_ -PRAGYA-
चूका ना सकोगे कभी उज़रत हमारे क़ब्ल की_ दिल में शगुफ्ता सी मोहब्बत..वो कर्ज़ हैं तुम पर_ -PRAGYA-
ज़माना पुछता हैं चेहरे में गज़ब की कशीश- ए-खामोशी हैं_ कैसे कहे_? हरसू से नूर का तिरगी से भी वास्ता हैं मैं नियूश सा सुनता…
ज़माना पुछता हैं चेहरे में गज़ब की कशीश- ए-खामोशी हैं_ कैसे कहे_? हरसू से नूर का तिरगी से भी वास्ता हैं मैं नियूश सा सुनता…
जी रही हूँ..ज़िन्दगी का बोझ उठा रहीं हूँ_ मोहब्बत की सज़ा बो गये हो तुम मैं गुनाहों की फसल काट रही हूँ_ -PRAGYA-
रक़िब ना बनों उल्फ़त के खामख्वाह वस्ल की जीद से_ दुरियों में ही सही लबरेज हैं दिल मोहब्बत से क्या इतनी आराईश काफी नहीं ढलती…
शब भर यादें तिरी शबनम सी दिल को भिगोती रहीं_ दूरियाँ इस कदर दरम्यां हमारे सिमट गई की मैं छूती रहीं हर याद तिरी वो…
यूँ तो बीत गये कई पल बिन तेरे भी_ पर संग तेरे बीते वो अनमोल पल भुलाये नहीं भूलते_ ताजिंदगी तुझे चाहने की रज़ामंदी हैं…
शज़र भी सुख जाते हैं बंद दरवाजों में_ हमें तो एक अरसा हो गया हैं इंतज़ार में तिरी कैद हुए_ -PRAGYA-
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