प्रकृति शरण
जहां झर झर झर झर झरने की
आवाज की गुंजन होती हो
जहां धरती निज संतानों को
यूं देख मनोरंजित होते हो
मेरा जी करता वहां जाऊं मैं
कहीं काश वह बस जाऊं मैं
बैठूं वृक्षों की छांव में
देखो अनदेखे राहों को
कभी होड़ करूं मैं हवाओं की
फिर उड़ाऊ में काली घटाओं को
कभी घाटी की गहराई
कभी नापू शिखर की चोटी को
कोमल धूल को दूर उड़ा कर
कंकरिया समेटू छोटी को
नव पत्तों का ओढू दुशाला
पुष्प मेरा परिधान
निझरणी तट पर बैठ कोयल संग
मीठे गाऊ गान
Very nice
🙏🙏🙏🙏
Nice
thank you
Good
Thankyou