पूर्णिमा

पूर्णिमा जब चांदनी धरती पर आकर पसारती है लगे चांदी के आभूषण से धरती का रूप सवारती है मां के पास आंगन में सोए नन्हे…

तबाही

अनजाने में इश्क का गुनाह कर दिया बंदिशों से खुद को रिहा कर दिया पाक रूह कहकर कभी सजदा करने वाले अब कहते हैं मोहब्बत…

पावन प्रकृति

जहां हवाएं पल-पल बनाएं एक नई तस्वीर उसी आकाश में लिखना चाहूं मैं अपनी तकदीर नन्ही बूंदे नई किरण संग बना रही रंगोली मैं भी…

सावरे का सावन

काली जुल्फे सवारे काला लाए अंधियारे मिले कितहु ना चेन बढ़ रही बिरहा रे काहे रूप को सवारू नैन काजल क्यों बारू रंग तेरा भी…

खामोशी

जिसकी कामयाबी का चर्चा चारों ओर हो गया वह जाने क्यों अब खामोश हो गया जाने कैसा सितम ढाया होगा इस जिंदगी ने उस पर…

एक भूल

मैं आज जो निकली राहों पर यह राह मुझे बात सुनाती है कहे शर्म तो आती ना होगी मेरा घ्रणा से नाम बुलाती है कहे…

गूंज

हमारा आशियाना एक वादी बन गया है फिलहाल अब घर के सामान हमारे मित्र हो गए एक सुंदर वादियों सी गूंज रही आवाज थी पुन्ह…

मजहब का पहरी

वाह भाई मजहब के ठेकेदारों क्या खूबी फर्ज निभाया है दुश्मन लगी है मानव जाति और काल को मित्र बनाया है कभी उनकी फिक्र भी…

लुका छुपी

लुका छुपी का खेल अब खेला नहीं जाता पछतायेगा जाने के बाद तुम्हें मेरे तेरा सब कुछ जीने का मेरा धेला भी नहीं जाता

गुड़हल

मैंने पूछ ही लिया था एक दिन गुडहल से इतनी हिम्मत तू कहां से लाता है मैं मुरझा जाती हूं थोड़े से दर्द से तू…

आशियाना

माना बहुत दूर है आशिया तुम्हारा इतने दिन हो गए तुम्हें आते आते इंतजार की घड़ी इतनी बड़ी हो गई मेरी कलम थक गई तुम्हारी…

फोन में प्राण

समय नहीं देते अभिभावक फिर बाद में पछताते हैं जब छोटे-छोटे बच्चों को बड़े फोन दिलाए जाते हैं पहले बच्चे खेलने जाते जाने संयम की…

मानवता दहन

सुलग रही है प्रतिदिन ज्वाला मानवता के पराली में कायरता की राख छनेगी कलयुग की इस जाली में पसरा होगा बस सन्नाटा मर्यादा की दहलीजो…

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