प्रभु! मैं तुझको कैसे पाऊं।
कौन है यहां अपना मेरा,
तुझ पर ही है, अर्पित जीवन सारा।
कौन-सी मैं व्यथा सुनाऊं,
प्रभु! मैं तुझको कैसे पाऊं।
कब तक यूं आस लगाऊ।
कुछ तो बोलो, हे प्रभु!
कब तक मैं यह ज्योति जलाऊ,
बुझ रही आशा की लौ,
कैसे इसमें प्रकाश जगाऊं,
प्रभु मैं तुझको कैसे पाऊं।
अतिसुंदर
धन्यवाद सर
बहुत उम्दा
धन्यवाद सर
Wow
Thank you
Awesome mam
Thank you sir
😍👌
ईश्वर तो सर्वव्यापी है। कबीर की पंक्ति याद आती है मुझे ” जहा वे ईश्वर को सब श्वासो की श्वास में बतलाते है।
सुंदर समीक्षा के लिए हार्दिक धन्यवाद
Bhajan bhi likha kare
Thank you
Okk
बहोत ही मोहक मधुर रचना । अति सुंदर भाव
धन्यवाद
Bahut achhi pankitya
धन्यवाद