प्रेयसी तुम प्रेरणा हो।
प्रेयसी तुम प्रेरणा हो
मेरी हर एक शायरी का ।
जब मैं करता हूँ किन्हीं दो
पंछियों का प्रेम वर्णन
जब प्रशंसा में प्रकृति की
गढ़ता हूँ मैं शब्द अनगढ़
याद करता हूँ मिलन तब
बागीचे में दोपहरी का
प्रेयसी तुम प्रेरणा हो
मेरी हर एक शायरी का ।
जब मैं बोता हूँ कविता में
बीज कोई क्रांति का
जब दमन करती है कविता
छल कपट व भ्रांति का
स्मरण करता हूँ तेरे
संघर्षों की स्मृतियों का
प्रेयसी तुम प्रेरणा हो
मेरी हर एक शायरी का ।
मैं लिखूँ विप्लव की कविता
विप्लव की कविता
या लिखूँ दुर्दिन का गाथा
जर्द-रू बच्चा लिखूँ या
फिर लिखूँ लाचार भाता
हर विषय में रूप हो तुम
आशाओं की रोशनी का
प्रेयसी तुम प्रेरणा हो
मेरी हर एक शायरी का ।
आज जब मैं लिख रही हूँ
प्रेरणा का स्रोत तुमको
मानती हूँ हर सुहावन
भावना का रूप तुमको
तुम प्रवाहित कर रहे हो
रस सभी में जिंदगी का
प्रेयसी तुम प्रेरणा हो
मेरी हर एक शायरी का।
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