बंद किताब

कुरेदने ना देना
इस दिल को मेरे।

राख तले दबे अरमान,
सुलग उठेंगे
शोलो की तरह।

झांकने ना देना
इन आंखों में मेरी।

इनमें तुम्हारा अक्स छपा है
पहचान लिए जाओगे
राधा की आंख में कृष्ण की तरह।

पढ़ने ना देना
चेहरा मेरा
आयते छपी है
तेरे मेरे प्यार की

चर्चा करेंगे ख्वामखा।

खुल जाएंगे
सारे राज़
ताजे छपे अखबार की तरह।

रहना हमेशा
आसपास मेरे
खुशबू बनकर

वरना झड़ जाएंगे
ये फूल
बरसो दबी किताब के
अचानक
खुलने की तरह।

सीने में दबे
दर्द को
महसूस
ना होने देना।

वरना
आंखों से बह उठेंगे
फिर अश्कों की तरह।

देखो!
दस्तावेज खुल पड़ेंगे
किसी मुकदमे की तरह।

हम हो जाएंगे रुसवा!
कभी ना हो सके
फैसले की तरह।

अच्छा हो
दबे रहें सब
किसी धूल में लिपटी
किताब की तरह।

निमिषा सिंघल

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