बचपन की याद

जब भी बैठता हूं किसी सिरहाने से सटकर, बहुत सी यादें याद आ जाती हैं… 
इस आधुनिकता के खेल में भी मुझे, अपने बचपन की याद आ जाती है.. 
रसना खुश नही इन मंहगे पकवानो से, बस बचपन की वो ‘मलाई’ याद आती है… 
नही मिलता जब चैन ठंडे आशियानों में भी, तो नीम के नीचे पङी वो ‘चारपाई’ याद आती है… 
अकेले जब किसी सफर में थक जाता हूं मैं, तो सुकून देने वाली वो मां की गोद याद आती है… 
तसल्ली महसूस न होती खुद की कमाई से जब, तो पापा के पैसे देने वाली वो ‘आदत’ याद आती है… 
बीमार पङते हैं अब खुद चुन लेते हैं दवाई,  फिर भी बिस्तर पर लेटे हुए अपनो की ‘इबादत’ याद आती है… 
दौङ धूप में गुजर जाते हैं दिन अब तो, खेलकर लौटते थे वो ‘शाम’ याद आती है… 
आशियाने जलाये जाते हैं जब तन्हाई की आग से, तो बचपन के घरौंदो की वो मिट्टी याद आती है… 
याद होती जाती है जवां बारिश के मौसम में तो,  बचपन की वो कागज की नाव याद आती है… 
सुलगते है शरीर चारदीवारी में रहकर, तो मां-पापा के स्वर्ग की छांव याद आती है…
~कविश कुमार
रसना =जीभ

Related Articles

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

Responses

+

New Report

Close