बच्चों के स्कूल जाते ही सूना घर ,घर को खाता है
बच्चों के स्कूल जाते ही सूना घर ,घर को खाता है
ख़ुशी से मुफलिसी का बेटा कहाँ कारखाने जाता है !!
भूख तोड़ देती है इक-इक ख्वाईशों के सब खिलौने,
कोई पत्थर तोड़ता है,कोई अखबार बाँट के आता है !!
न धुप लगती न मासूम बदन पे कभी बरसात लगती
सर पे कई जिम्मेदारियाँ ओढ़ के वो बाज़ार जाता है !!
दुकानें ताक के लौट आती है घर आँखों की हसरतें
बिन माँ बाप के बस,बेचारियाँ खरीद के घर लाता है !!
देख के मेरी इस बेबशी पे ,रूहे – पुरव रोने लगती है
तितली जैसे परो पे जब ईंटों का कोई बोझ उठता है !!
पुरव गोयल
शानदार
shukriya sahab ji housla afazai keliye
shukriya sahab ji
Asm
shukriya sahab ji housla afazai keliye
shurkriya sahab ji