Categories: हिन्दी-उर्दू कविता
Kapil Singh
Loves life I live :)
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अलख जगे आकाश
तन कुँआ मन गागरी, चंचल डोलत जाय ! खाली का खाली रहे, परम नीर नहिं पाय !! मोती तेरा नूर मैं, देखूं चारों ओर…
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दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34
जो तुम चिर प्रतीक्षित सहचर मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष तुम्हे होगा निश्चय ही प्रियकर बात बताता हूँ। तुमसे पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…
अहसास का अहसास …!
अहसास का अहसास …! मुझे अहसास हो रहा है, कि मेरा दिल, न मेरे काबू में, ना मेरे पास, भटक रहा है, जाने क्या आस …
तू कहीं है यहीं
कुछ अनकहे अलफ़ाज़ , कुछ बुदबुदाते से अहसास, तेज़ होती साँसे, मनचली सी ख्वाहिशें और धडकनों का साज़ , जो देती हर पल आवाज़, यूँ…
Nice words chosen and the way of expression..
thanks komal
Nice