बाढ़
अनहोनी यह कैसी है !
काली छाया जैसी है।
हंसते हुए फूल से चेहरे ,
मुरझा गए एक ही पल में ।
काल की कराल गति से,
विमुख हुए प्रिय जनों से।
अपशगुनी ये कैसी है ,
मौत के तांडव जैसी है।
हरी भरी थी घाटी जो ,
अटी पड़ी है लाशों से।
रुदन मजा है चारों ओर
दहशत देखो कैसी है।
हर तरफ बेबसी लाचारी,
हाय यह घटना कैसी है।
अपने प्रिय जनों से मिलने को,
कातर आंखें यह कैसी हैं।
अनहोनी यह कैसी है
काली छाया जैसी है
निमिषा सिंघल
वाह जी वाह
आभार
अति उत्तम रचना
आभार
धन्यवाद
Good
Thanks dear
Nice
Thank you
Wah