बेटी को घर में आने दो

इस कलि को मुस्कुराने दो
कोख से धरती की गोद में आने दो
बिखेर देगी चारोंतरफ खुशियाँ
खुल के तो इसे मुस्कुराने दो।
बेटी को घरस में आने दो।>2
रोपित करो इसे अपने आँगन में
इसकी नज़र-२ तेरा नजरिया बनेगी
इसकी धड़कन-२ तेरी दुआ बनेगी
इसकी साँस-२ तेरी महक बनेगी
इसकी बात-२ तेरी चहक बनेगी
इसकी कदम-२ तेरे चिन्ह बनेंगे
इसके हाथ-२ तेरी पहचान बनेंगे
इसे अपने आकार में ढल जाने दो। बेटी को………… आने दो॥
किलकारियाँ इसकी जब तेरे आँगन में गूँजेगी
सन्नाटे के पहरों को तोड़ेगी।
हर पहर इसकी मुस्कुराहटें
तेरे दिल को सुकूँ देंगी।
आँखों में कई ख्वाब भर देंगी इसकी बातें
जब तेरे दिल को पढ़ लेंगी।
एक कविता,गज़ल, गीत है हर बेटी।
इस गीत को गुनगुनाने दो। बेटी को……………. आने दो॥
दहेज,उत्पीड़न,शोषण कल और कल की बातें
क्यों मन में खटास रखते हो।
बेटे जैसा मजबूत करे, क्यों कमजोर समझते हो।
दिल,विवेक, संवेदनाऐं दो बेटे को पत्थर नहीं।
बेटी की सी परवरिश में पालो बेटे को भी।
नसीहत,निगरानी बेटे के हिस्से में भी डालो
संस्कृति,नजाकत,सृष्टि, नारी का मान सिखाओ बेटे को भी।
कल ये हुआ !,कल कल..कल क्या होगा ?… इस डर को फिर जाने दो॥
बेटी को घर में आने दो।>2
इस कलि को………………………………….मुस्कुराने दो॥
** ” पारुल शर्मा ” **

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