‘मधुयामिनी’

रात थी बात थी एक मुलाकात की

तू मेरे साथ था मैं तेरे साथ थी

पढ़ रहे थे तुम रात्रि में रश्मियां

आँच में तेरी मैं फिर पिघलती रही

चूड़ियों ने कहा जो था कहना हमें

पायलों की झनक में था सोना तुम्हें

जुल्फों की छांव में तुम सिमटते रहे

हम तो खोते गये तुमको पाते हुये

चुम्बनी बारिशों में था भीगा बदन

हम तुम्हारी रगों में समाते गये

रातभर ना करी हमनें बातें कोई

गहरे समुन्दर में दोनों नहाते रहे

प्रिय! तुम्हारी- हमारी मधुयामिनी’

हम बिखरते रहे तुम तुमको पाते रहे

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