मानवता
मानव ही दानव बने, औ बनता भगवान्
मानव तन अनमोल है, मानवता है प्राण
मानवता है प्राण, धार्मिक झगड़े छोडो
ईश्वर सागर मान, नदी अवतार है जोडो
कह पाठक कविराय, एक उन्माद है दानव
ईर्ष्या नहीं सद्भाव, जोड़िए सब को मानव
मानव ही दानव बने, औ बनता भगवान्
मानव तन अनमोल है, मानवता है प्राण
मानवता है प्राण, धार्मिक झगड़े छोडो
ईश्वर सागर मान, नदी अवतार है जोडो
कह पाठक कविराय, एक उन्माद है दानव
ईर्ष्या नहीं सद्भाव, जोड़िए सब को मानव
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मानव तन अनमोल है वह कब की लेखनी से निकली एक बहुत ही सुंदर रचना
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
Very nice