मुक्तक
नही नव्य कुछ पास में मेरे सपने सभी पुराने है
आधे और अधूरे है पर अपने सभी पुराने है |
कुछ विस्मृत हो गये बचे कुछ यादों के गलियारों में
आज भी मतिहीन की आँखों में गुजरे वही जमाने है
मन में उठती टीसों को मैं गीत बना कर गा लेता
मेरी गीतों की माला में बिखरे हुए तराने है |
सच ये है कि हर मोती को टूट टूट गिर जाना है
लिये दिये जो यहीं पे उसके सारे कर्ज चुकाने है ||
उपाध्याय…
nice one
Wah