मुहब्बत का खुमार
तेरे आने से दिल को करार आया है।
तुझे पाकर खुशियां बेशुमार पाया है।
मैंने पी नहीं लेकिन, मैं नशे में चूर हूं,
मुहब्बत का ये कैसा, खुमार छाया है।
मौसमें भी अब रंगीन सी लगने लगी,
पतझड़ ने भी कैसा, बहार लाया है।
एक दूजे में हम, डूबे कुछ इस कदर,
तू जिस्म है, तो मेरा आकार साया है।
मेरी जिंदगी तो है, एक खुली किताब,
फिर क्यों लगता, असरार छिपाया है।
तेरे सिवा कोई और नज़र आता नहीं,
निगाहों में बस तेरा, निगार बसाया है।
देवेश साखरे ‘देव’
1. असरार-भेद, 2. निगार-छवि
Bahut khub
आभार आपका
Nice
Thanks
Awesome
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Wahhh
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सही
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वाह
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वाह
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सुन्दर गजल