मेरा गाँव.

सफ़र मे अपना गाँव भूल गये है,
मोहब्बत वाली छाव भूल गये है

महक मिट्टी कि बारिश वाली
वो खुशियाँ शिफारिश वाली
हम उनसे दुर इतने क्यो है अब
इनसे मजबुर इतने क्यु है अब
कि खुद से खुद का अलगाव भुल गये है,
सफर मे अपना••••••••••••••••••

सहर, गाँव हमारा दिल से जाता नही है,
जैसे महबुब को कोई भुल पाता नही है
अब तो त्योहारो का सहारा बचा है केवल
बिन इसक अब कोई घर जाता नही है

बडो के आशिषो का फैलाव भुल गये है
सफर मे अपना••••••••••••

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