मेरी आंखों से रिस-रिस कर
मेरी आंखों से रिस-रिस कर कोई तूफ़ान कहता है,
सताओ यूं ना तुम मुझको ऐ मेरी जान कहता है l
तुम्हें मैं याद करने की तलब में इस कदर खोया,
कि अक्सर अब मुझे चेहरा मेरा अंजान कहता है l
तुम्हारे ख्वाब में अक्सर मैं इतना डूब जाता हूं,
कि बच्चों सा मेरा दिल भी मुझे नादान कहता है l
अपने उजड़े घर की ओर जब भी देखता हूं मैं,
मेरा घर मुझपे हंसता है मुझे वीरान कहता है l
ये मेरा आखिरी खत है मैं खत अब लिख ना पाऊंगा,
मेरा दम टूटने को है मेरा फरमान कहता है l
तुम्हारा मुझसे क्या ताल्लुक है जब भी सोचता हूं मैं,
कोई चुपके से आकर के इसे बेनाम कहता है l
“सागर” मुझसे कहता है यहीं पर डूब जाओ तुम,
उबरना मेरी मौंजों से नहीं आसान कहता है ll
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-Er Anand Sagar Pandey
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