पसीना बहाना जरूरी है तेरा,
तभी तो कदम लक्ष्य चूमेगा तेरा।
सजग हो स्वयं को लगा श्रम पथ पर,
सवेरा है जग जा, आलस्य मत कर।
तेरी राह देखे खड़ी है बुलंदी
कर ले तू मेहनत से अक़्दबंदी,
निशाना लगा आंख पर मत्स्य के तू
पायेगा पल-पल फतह सत्य की तू।
परिश्रम का फल मिलेगा सभी को
लगा पेड़, फल-फूल देगा कभी तो।
कंटक रहित राह मेहनत होगी
तेरी सफल चाह मेहनत से होगी।
उलझन नहीं एक मंजिल पकड़ ले
जाने न दे हाथ से तू जकड़ ले,
नौका पकड़ एक, कर पार सरिता
यही जोश देती तुझे आज कविता।
——- सतीश चंद्र पाण्डेय, चम्पावत, उत्तराखंड