Categories: हिन्दी-उर्दू कविता
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पागल पथिक
मैं कहाँ था कहाँ से कहाँ आ गया मैं जंहा था जहां से जंहा खो दिया मंजिल थी मेरी कहि और पर पर में खोया…
मुझे यकीन है
मुझे यकीन है की इक रोज़ तेरा भी सवेरा होगा, अंधेरो का कोई साया ना होगा! इक रोज़ तेरा भी सब कुछ होगा, कुछ ना…
सब में प्रभु पहचान
ऊँची तेरी शान रे बन्दे सब में प्रभु पहचान रे बन्दे कोई बड़ा न कोई छोटा हर चेहरे पे झूठा मुखौटा कहने को ही मन…
सब में प्रभु पहचान
ऊँची तेरी शान रे बन्दे सब में प्रभु पहचान रे बन्दे कोई बड़ा न कोई छोटा हर चेहरे पे झूठा मुखौटा कहने को ही मन…
दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34
जो तुम चिर प्रतीक्षित सहचर मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष तुम्हे होगा निश्चय ही प्रियकर बात बताता हूँ। तुमसे पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…
nice
Thank u
nice
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वाह बहुत सुंदर