Site icon Saavan

यह न कहो अवरोध खड़े हैं

यह न कहो अवरोध खड़े हैं,
कैसे मंजिल को पाऊँ मैं,
जहां-तहां बाधाएं बैठी
कैसे कदम उठाऊँ मैं।
यही निराशा खुद बाधा है
जो आगे बढ़ने से पहले
डगमग कर देती है पग को
चाहे कोई कुछ भी कह ले।
भाव अगर मन में भय के हों
काली रात घना जंगल हो,
कैसे पार करे मन उसको
कैसे जंगल में मंगल हो।
मंगल मन में लाना होगा
भय को दूर भगाना होगा,
चीर गहन अंधियारे को
पथ रोशन करना होगा।
हार गया मन तो सब हारा
मन का ही यह खेल है सारा
मन में अगर बुलंदी है तो
लक्ष्य हाथ आयेगा सारा।
——– सतीश चन्द्र पाण्डेय, चम्पावत, उत्तराखंड

Exit mobile version