रानी लक्ष्मीबाई

युद्ध की हुंकार थी , ललकार की वाणी थी वो
सिर्फ झांसी की न पूरे हिंद की रानी थी वो

उसमें था जज्बा भरा कूट कर के देशभक्ति का
वो प्रतीक इस जहां में ठोस नारी शक्ति का
जान से बढ़कर थी उसको अपनी ये धरा
प्रेम मातृभूमि का था दिल में लबालब भरा

क्रांतिकारी भाव की तस्वीर पुरानी थी वो
सिर्फ झांसी की न पूरे हिंद की रानी थी वो

था गजब का शौर्य उसका थी गजब की नारी वो
हौसला रखती थी सदा पर्वतों से भारी वो
उसके आगे शत्रुओं की एक नहीं चलती थी
इसलिए वो दुश्मनों को और ज्यादा खलती थी

तबाह करती दुष्टों को इतनी तूफानी थी वो
सिर्फ झांसी की न पूरे हिंद की रानी थी वो

चाहते अंग्रेज थे कि उसपे काबू पाएं हम
उसकी भूमि पर राज अपना चलाएं हम
पर वो थी एक देशभक्त मानती कैसे भला
मिट्टी को वो अपनी मां न जानती कैसे भला

अपनी मातृभूमि की सच्ची दीवानी थी वो
सिर्फ झांसी की न पूरे हिंद की रानी थी वो

अब भी जग में नाम उसका वीर नारियों में है
उसका नाम मां भारती के पुजारियों में है
लोग उनके चरणों पे अपना कपाल देते हैं
लक्ष्मीबाई नारी शक्ति की मिसाल देते हैं

आई भले धरा पर, पर आसमानी थी वो
सिर्फ झांसी की न पूरे हिंद की रानी थी वो

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