रो देता है मन मेरा भी!!
दुखी हो जाता है मन मेरा भी
जब जब दुखी तुझे मैं पाता हूँ
क्या बोलूँ मैं दर्द मेरा
टूट सा पूरा जाता हूँ
कभी सुनकर खबर शहीदों की आत्मा मेरी भी रोती है
एक माँ को बार-बार टूटता देख तकलीफ मुझे भी होती है
हर पल धर्म पर लड़ते लोग
समझ मुझे न आते हैं
भाईचारे की भावना को ये सब शर्मशार कर जाते हैं
माँ बेटी की इज्जत करना हमारी संस्कृति ही हमे सिखलाती है
फिर भे रो देता है मन मेरा
जब निर्भया जैसी घटना की, खबर कान में आती है
हँसते खेलते बच्चों को देख, मन खुशियों से भर जाता है
फिर भी रो देता है मन मेरा
जब सड़क किनारे बच्चा कोई भूख़ा नज़र में आता है
मेरी और तुम्हारी कोशिश से ही
सब कुछ बदल सा जाएगा
ये रोता मन हम सब का
फिर से कभी न रो पाएगा
सरहद पर खुशियां होगी
भूखा फिर न कोई रह पाएगा
भय के बदल छट जाएंगे और
फिर ये देश एक हो जाएगा
– मनीष उपाध्याय
कृपया सावन पर और कविताएं लिखिए
बिल्कुल सही कहा आपने रो देता है मन मेरा भी
बहुत सुन्दर रचना प्रस्तुति