वतन में आज नया आफताब निकला है,
वतन में आज नया आफताब निकला है,
हर एक घर से गुल ए इंकलाब निकला है।
सवाल बरसों सताते रहे थे जो हमको,
सुकूनबख्श कोई अब जवाब निकला है।
गये थे सूख समन्दर उदास आंखो के,
हर एक सिम्त से दरिया ए आब निकला है।
शुतुरदिली से जो छुप छुप के वार करते थे,
उन्हें चखाने मज़ा मुल्क़ताब निकला है।
सुकूं की सांस शहीदों के सारे कुनबे में,
खिला है चेहरा यूँ ताजा गुलाब निकला है।
अलग थलग है पड़ा मुल्क वो ही दुनिया में,
के जिसके मुल्क का खाना खराब निकला है।
इधर सुकूं तो उधर मौत का मातम पसरा,
असद को छेड़ने का ये हिसाब निकला है।
किसी की ईद किसी की “मिलन” है दीवाली,
नयी जगह से नया माहताब निकला है।
———–मिलन.
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कठिन शब्दों के अर्थ-
आफ़ताब-सूरज.
गुल ए इंकलाब-परिवर्तन का फूल.
सुकूनबख्श-संतोषजनक.
सिम्त-तरफ.
शुतुरदिली-बुजदिली.
मुल्क़ताब-मुल्क़ को रौशन करने वाला.
कुनबा-परिवार.
खानाखराब-बदनसीब
असद-शेर.
माहताब-चाँद.
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शानदार जबरदस्त जिंदाबाद
nice
लफ़्ज ब लफ़्ज बकमाल