शिक्षक
मैं शिक्षक हूँ
मुझसे अपेक्षा
समाज करता है।
मैं सत्य बोलूँ,
सादा रहूँ ,
सादा पहनू ,
कम बोलूँ ,
खर्च ज्यादा करूँ।
छात्रों को न मारू,
न डांट लगाऊं,
जो सरकार चाहे,
बस वह ही पढ़ाऊँ,
चाहे छात्र कोई भी हो ,
न धनिया मिर्ची
हरी सब्जी लूँ ,
कोई नेता आये ,
तो उसे सम्मान ,
मेरे अधिकारी से
ज्यादा दूँ।
अभिभावकों के ,
सामने हाथ जोड़ ,
खड़ा रहूँ।
जिन्हें नही जानता ,
उनके भी जाति,
मूल निवास के ,
कागजो पर हस्ताक्षर,
झूँठी शपथ के साथ करूँ।
मुझे चेक करने ,
कमी पर लताड़ पिलाने ,
का अधिकार अनेक को ,
परन्तु मेरे अच्छे काम पर ,
कुछ देने का अधिकार ,
किसी को नही,
मैं अच्छा हूँ या बुरा ,
इसका निर्णय छात्र नही,
अधिकारी नही,
सत्तापक्ष के
कार्यकर्ता करें,
बदले मैं मुझे मिलेगा क्या?
आप जानते ही है ,
परम् सम्मान
ए मास्टर…….।
*कलम घिसाई*
Satya kaha apne, yeh humare samaj ka durbhagya hai ki ajkal sikhshako ko guru nahi balki karmchari samjha jata hai, usi anusaar acharan bhi kiya jata hai..
जी ,मेरी कलम उस ओर ही इंगित कर रही है।। सचिव ,वेद ,गुरु इन तीनो पर नियंत्रण यानि विनाश की तरफ कदम