श्रध्दा सुमन
भले ही हमें भूल, बसे तुम ।
फिर भी हमें याद हरपल रहोगे ।
जब करेगे हम, शाला में जलसा, तुम इसकी फिजाओं में हरदम रहोगे ।
तेरी बगिया की क्यारी हरी हो गई है। शाखों पे फूल भी खिलने लगे हैं।
दूर बैठे तुम अंबर के उस जहाँ से । देखकर इसको खुश तो बहुत होते होगे।
हर एक मौके पे आँख नम होती हैं ये, पिता की तरह याद करते हैं तुझको । तेरे सपनों को साकार करने लगे हम।
देखकर हमको आशीश तो देते होगे।
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