सजेगी महफिल

तुम्हारी कविता प्रोफाइल पर
पढ़ता हूँ..
जब पढ़ता हूँ जी उठता हूँ,
यूं तो सहमा सहमा सा रहता हूँ..
पर तुम्हारे लिए हमेशा लड़ पड़ता हूँ
जाने क्या है जानता नहीं हूं मैं,
पर जो भी है अच्छा ही है..
यूं आती रहोगी तभी सजेगी महफिल,
मेरा दिल कहता है,
मैं तुम पर ही मरता हूँ..

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

Responses

  1. जब भी पढ़ता हूँ..
    सहमा-सहमा-सा..
    जाने क्या है ! जानता नहीं हूँ मैं..
    आदि होना चाहिए था..
    शिल्प में भी दम नहीं है
    बस भाव प्रधान है इसलिए सारी कमियां छुप जाती हैं आपकी..
    आगे से ध्यान रखिए और कुछ ढंग का लिखा करिये…
    नमस्ते

+

New Report

Close