साहित्य लिखो

साहित्य लिखो क्यों तुम आपस में लड़ते रहते हो कभी तुम जीतो कभी वो हारे क्यों जीत-हार में रोते हो पैसे कमाने के साधन तो…

सजेगी महफिल

तुम्हारी कविता प्रोफाइल पर पढ़ता हूँ.. जब पढ़ता हूँ जी उठता हूँ, यूं तो सहमा सहमा सा रहता हूँ.. पर तुम्हारे लिए हमेशा लड़ पड़ता…

मेरा चाँद

वो खिड़की भले ही बंद रहती है पर, महसूस तुम्हें ही करता हूँ.. तुम्हारे सो जाने के बाद भी, तुम्हारी याद में देर तक जगता…

इन्तजार..

वो ना जाने कहाँ रहते हैं आज कल, हमें उनके दीदार का इन्तजार है… बड़ा मीठा बोलतें हैं वो, हमें उनकी हाँ का इन्तजार है..

पहचान…

अगर दर्द समझता तू तो अपनी हरकतों पर शर्मिन्दा होता.. अलग-अलग पहचान से यूँ ताने ना मार रहा होता…

जीवन में..

जीवन में सबके होते हैं ऐसे लोग… जो रिश्तों महज खिलौना ही समझते हैं.. जब तक मन करता है खेल लेते हैं.. जब जी चाहे…

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