सुधा बरसे

सुधा बरसे सदा वाणी से,
ह्रदय में भी ना कोई गरल हो।
कभी किसी का,
दिल ना दुखाऊँ मैं
मेरी वाणी मीठी और सरल हो।
मदद कर सकूॅं पीड़ितों की,
ऐसा भाव रहे सदा मन में
हृदय की भावनाएं सदा तरल हों।
क्षमा-दान भी दे पाऊं,
कोई क्षमा माॅंगे तो मैं
किसी का जीवन कठिन न करूँ,
मेरा भी जीवन सरल हो॥
_____✍गीता

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Responses

  1. बहुत सुंदर गीता जी, आपकी रचनाएं उच्च स्तर की हैं। इनमें न किसी को ठेस देने की भावना है, न किसी का दिल दुखाने की भावना है। एक साहित्यकार का जैसा व्यवहार होना चाहिए वह सब आपके भीतर है। आपके मन में न कोई गांठ है न बेवजह ऐसा वैसा लिखने की प्रवृति है। बल्कि हृदय के सरल भाव हैं। वाह

    1. इतनी सुंदर समीक्षा और इतनी सुंदर सराहना हेतु आपका ह्रदय तल से आभार चंद्रा जी🙏

    1. आपकी दी हुई इस सुंदर और प्रेरक समीक्षा हेतु आपका हार्दिक धन्यवाद भाई जी सादर अभिवादन 🙏

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