सुबह कि लालिमा

सुबह की लालिमा

सुबह सुबह सूर्य की लालिमा
मुझसे कुछ कहती हैं
भोर हुआ जग जा प्यारे
चिड़िया ची – ची करती हैं
नदियाँ झरना जंगल के बुटे
सबसे अनोखे से लगते हैं
ओंस की खिलखिलाती बूँद
वसुधा को जब स्पर्श करती हैं
मोती जैसे चमक जाती
ओंस की सुनहरी बूँदे
जिवन्त हो जाती पुष्प लतायें
जब प्रकृति रस का पान हैं करती
फूलो पर मड़राते भौरे
प्रेम का इजहार हैं करते

महेश गुप्ता जौनपुरी

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

Responses

+

New Report

Close