Categories: हाइकु
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दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34
जो तुम चिर प्रतीक्षित सहचर मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष तुम्हे होगा निश्चय ही प्रियकर बात बताता हूँ। तुमसे पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…
रिश्तों के बाजार में अब तो नाते बिकते हैं ।
रिश्तों के बाजार में अब तो नाते बिकते हैं । मात-पिता को छोड़ अब वह सुत प्यारा, अब तो सास श्वसुर के पास रहते हैं…
पिता
एक पिता आख़िर पिता होता है.. जीवन की छाया ख़ुशियों का साया पिता जो हो तो जीने में अलग अंदाज़ होता है पिता हर घर…
“माँ शेरोंवाली तेरी जय होवे”
देवीगीत:- ‘नवरात्रि स्पेशल’ ********************* माँ शेरोंवाली तेरी जय होवे ओ जोतावाली तेरी जय होवे| ‘प्रज्ञा’ झुकाए तेरे चरणों में शीश माँ माँ शेरोंवाली तेरी जय…
मात-पिता की सेवा
भेजकर आश्रम में माता-पिता को, वह बहू-बेटा बहुत खुश हो रहे थे। चुपचाप चल दिए वे बुजुर्ग दंपत्ति, घर को छोड़ते वक्त बहुत रो रहे…
सुन्दर रचना
वाह
सुन्दर
👌