स्मृतियाँ
जीवन धारा
यूँ डूब जाता मन,
क्षितिज के उस पार,
ज्यूँ होता विवश दिनकर,
डूबने को बार-बार,
ज्यूँ पखारती चाँदनी,
तम के घनघोर केश,
ऐसे ही भेद जाती,
स्मृतियाँ हृदय पटल,
पर रश्मि कण बिखेर,
करते तारे परिहास,
धर जुगनूओं का वेश,
ऐसे करा जाता कोई,
भावनाओं को समय की,
अटखेलियों में प्रवेश ,
जैसे धूप-छाँव के अन्तराल,
आ जाती अकस्मात क्षण,
भर को बरखा बन बहार,
ऐसे ही समय की धार में,
कुछ लम्हे कर जाते निहाल,
उठती-गिरती लहरें नदिया में,
करती कल-कल मधुर गान,
ऐसे ही गहरे अन्तर्मन में,
स्मृतियाँ करतीं स्नान,
दे जाती शीतल रातें,
उपवन को शबनम का उपहार,
ऐसे हीं छोड़ जातीं स्मृतियाँ,
मन उपवन पर गहन छाप ।।
Nice
Thanks Dev Rajput ji
bahut sundar ji
Thanks Rakhi ji
Bahut khoob 🙂
Thanks versha kelkar ji