हम तेरे वादों की जब गहराई में उतरे।

हम तेरे वादों की जब गहराई में उतरे।
सदमा सा लगा जब सच्चाई में उतरे।।
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तुमको ढूंढते रहें थे महफिल महफिल।
पर सुकून मिला जब तन्हाई में उतरे।।
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जिसनें चाहा जैसा वैसा बनाया खुद को।
कुछ ने बुरा किया कुछ अच्छाई में उतरे।।
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हमे जो तजुर्बा हुआ वही लिखतें रहें है।
जो फुरसत दे जिंदगी तो रानाई में उतरे।।
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अज़ीब है वो ही कहतें है बेवफा हमकों।
जिसने वफ़ा की ही नहीं,बेवफ़ाई में उतरे।
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ज़िन्दगी तेरी तपिश में हम तो राख हो गए।
अब तो छाह कर जो बचे है परछाई में उतरे।।
@@@@RK@@@@

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