*हम भी अपना जीवन जी लें*

अपने जब बेगानों संग मिल,
महफ़िल नई सजा लें
हम भी फ़िर राह वो छोड़ें,
मंज़िल नई बना लें
पोंछ के अपनी आंख के आंसू,
हम भी नाचें-गा लें
हम भी अपना जीवन जी लें,
ये नई रीत अपना लें
माना ये आसान नहीं है,
पर वक्त का तकाज़ा यही है
कम कहां हैं इस जीवन की मुश्किलें..

*****✍️गीता

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Responses

  1. बहुत ही प्रशंसनीय कविता
    जिसे पढ़कर सकारात्मक मानसिक परिवर्तन मस्तिष्क में उद्वेलन करता है और हमें अपने जीवन तथा स्वयं के प्रति प्रेम व कर्तव्य करने के लिए प्रेरित करता है

    1. इतनी सुन्दर समीक्षा हेतु आपका हार्दिक आभार प्रज्ञा जी बहुत सारा धन्यवाद

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