हर रिश्ता तार-तार हुआ

रूह मेरी तड़प तड़प गई, तूने ना पुकार सुनी

तुझसे नाउम्मीदी में, बैरंग सी यह फिज़ा बुनी

ज़िन्दगी तो बसर गई, हर रिश्ता तारतार हुआ

तेरेमेरे इस खेल में, हर किरदार दागदार हुआ

                                                       …… युई

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

किरदार

खुद की भावनाओं से रिश्ता टूटता रहा, एक नया किरदार अंदर ही अंदर बनता रहा। रिश्तों से रिश्तों तक का सफर तय होता रहा, एक…

Responses

+

New Report

Close