हल तो खोजना होगा
बारह बरस की कोमल कली थी,
अपने ही घर पर, पर, अकेली थी।
जाने कहां से आए थे दानव,
दानव ही थे वो, बस दिखते थे मानव।
कोयल सी बोली थी, दिखने में भोली थी,
अपने ही घर पर, पर, अकेली थी।
अपने घर में भी सुरक्षित ना हो तो,
किसका ये दोष है तनिक सोचो तो
क्या दोष है न्याय – प्रणाली का,
मिलती नहीं सज़ा जल्दी से,
हल तो इसका ,खोजना ही होगा
देर ना करनी, बस जल्दी से।
भावपूर्ण ,मार्मिक
धन्यवाद मोहन जी।
अत्यंत मार्मिक और रोंगटे खड़े कर देने वाली कविता
आज- कल की ही एक दुखद घटना पर आधारित 😥
बहुत हीं मार्मिक भाव
🙏
पुनरुक्ति अर्थालंकार की पूट
“पर, पर” का सुन्दर प्रयोग
अतिसुंदर
बहुत बहुत धन्यवाद भाई जी 🙏
उनके घर भी जल जायेगे,
जो सोच बना ऐसे आयेगे|
एक दिन बेटी बोलेगी-
फिर पापा भर- भर आसू बहायेगे|
यह मेरी कविता का अंश है
✍🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
बहुत सुंदर
धन्यवाद आपका 🙏
Waah waah
Thank you Kamla ji
अतिसुन्दर
Thank you Piyush ji