हिहिन्दी कविता -मोहब्बत की कली |

हिन्दी कविता -मोहब्बत की कली |
हमने क्या जुर्म किया तू किसी और होके चली |
खिल के मुरझा गई मेरी मोहब्बत की कली |
तुम बदल जाओगे कभी हमने सोचा ही नहीं |
तोड़ दिल निकल जाओगे ख्याल रखा ही नहीं |
करके वादा तेरा मुकर जाना मुझको है खली |
अब ना दिल किसी से लगाएंगे कसम खाई है |
तेरे जैसे होते माशूका यही सोच शरम आई है |
क्यो तेरी दुनिया खुदा मोहब्बत नहीं है फली |
रहे जहा भी तू कभी भूले याद करना मुझे |
बदनाम ना हो मोहब्बत किसी न कहना इसे |
गम मिले मुझको तुझको खुशिया जहा की भली |
हमने क्या जुर्म किया तू किसी और होके चली |
श्याम कुँवर भारती [राजभर] कवि ,लेखक ,गीतकार ,समाजसेवी ,
मोब /वाहत्सप्प्स -995550928

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