ग़रीब कौन है…?
ग़रीब कौन है…?
वो—
जो कष्ट से जीवन जीता है
मुफ़लिसी की घूंट पीता है
कपड़े तन पे नहीं
आनंद जीवन में नहीं
सहमी मज़बूर ज़िन्दगी
“पॉलीथिन”में ग़म डुबोने–
की नाकाम कोशिश–और
खुद ही मरती ज़िन्दगी
बनते हैं विकास के
रास्ते जिनके लिए–
दूर करने को अशिक्षा-असभ्यतायें
बन जाती उनके लिए योजनायें
या—
वो– हैं ग़रीब
जो बैठकर कुर्सियों पर–
हिसाब लगते उंगलियों पर
कैसे योजनाओं की कमाई
मेरे हिस्से आएगी…?
कागज़ी इमारतों पर कैसे-
कमिशनों की पुताई हो पाएगी…?
सरकारी ऑफिसों के ऑफिसर
जेब भरने के चक्कर में रहते व्यस्त
मानो,ग़रीबी इन्हें ही लगी हो जबरदस्त
फिर,ग़रीब कौन है..?
शून्यता है,सब मौन हैं
हो आभास तो झांको ज़ेहन में
कहाँ दिखती ग़रीबी
सिसकती नयनों में,उनके रोदन में
या हो रहे उनके साथ दोहन में
ग़रीब–कौन है..?
रचनाकार— रंजित तिवारी
पटेल चौक,
कटिहार
Nice