ग़ज़ल
काश! कोई तो रास्ता निकले.
मुश्किलों से मेरा गला निकले.
जान..छूटेगी.. उसके.. छूने से,
जान आये तो मेरी जां निकले.
लाख सदियों में तय नहीं होगा,
फ़ासले.. इतने दरमियां निकले.
कौन.. होता हूँ.. दोष दूँ उसको,
क्या पता मुझमें ख़ामियाँ निकले.
—डॉ.मुकेश कुमार (Raj Gorakhpuri)
बेहतरीन जी