ज़िन्दगी की किताब राही अंजाना 6 years ago अभी ज़िन्दगी की किताब के चन्द पन्नों को पटल कर देखा है। अपने बचपन को जैसे सरसरी निगाहों से गुजरते देखा है, यूँ तो खुशियों के पायदान के पृष्ठ पर आज पैर हैं हमारे, मगर हमने भी दुखों के हाशियों पर खड़े रहकर देखा है॥ – राही (अंजाना)