Categories: हिन्दी-उर्दू कविता
Tags: ज़िन्दगी पर कविता
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ज़िन्दगी की किताब
अभी ज़िन्दगी की किताब के चन्द पन्नों को पटल कर देखा है। अपने बचपन को जैसे सरसरी निगाहों से गुजरते देखा है, यूँ तो खुशियों…
आज़ाद हिंद
सम्पूर्ण ब्रहमण्ड भीतर विराजत ! अनेक खंड , चंद्रमा तरेगन !! सूर्य व अनेक उपागम् , ! किंतु मुख्य नॅव खण्डो !! मे पृथ्वी…
अलख जगे आकाश
तन कुँआ मन गागरी, चंचल डोलत जाय ! खाली का खाली रहे, परम नीर नहिं पाय !! मोती तेरा नूर मैं, देखूं चारों ओर…
अलख जगाआकाश
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अलख जगा आकाश
‘मोती’ रोवत थान पर, माई गयी आकाश ! किसकी माई कब गयी, वह तो तेरे पास !! अलख जगा आकाश में, सुना जो भागत…
bahut hi khoobsurat Shakun ji
देखा है दुनिया को अपनी दिशा बदलते
अपने लोगो को अपनो से आंखे फ़ेरते
कतरा कतरा जिंदगी का रेत फिसलता जाता है
देखा है जिंदगी को मौत में बदलते
Thanks bhai
Very good
बेहतरीन प्रस्तुति