ज़िन्दगी की किताब
अभी ज़िन्दगी की किताब के चन्द पन्नों को पटल कर देखा है।
अपने बचपन को जैसे सरसरी निगाहों से गुजरते देखा है,
यूँ तो खुशियों के पायदान के पृष्ठ पर आज पैर हैं हमारे,
मगर हमने भी दुखों के हाशियों पर खड़े रहकर देखा है॥
– राही (अंजाना)
bahut hi khoobsurat Shakun ji
देखा है दुनिया को अपनी दिशा बदलते
अपने लोगो को अपनो से आंखे फ़ेरते
कतरा कतरा जिंदगी का रेत फिसलता जाता है
देखा है जिंदगी को मौत में बदलते
Thanks bhai
Very good
बेहतरीन प्रस्तुति