Site icon Saavan

कितने ही दिन गुज़रे हैं पर, ना गुजरी वो शाम अभी तक;
तुम तो चले गए पर मैं हूँ, खुद में ही गुमनाम अभी तक!
.
तुम्ही आदि हो,…तुम्ही अन्त हो,…तुमसे ही मैं हूँ, जो हूँ;
ये छोटी सी बात तुम्हें हूँ, समझाने में नाकाम अभी तक!
.
कैसे कह दूँ, …तुम ना भटको, …मैं भी तो इक आवारा हूँ;
शाम ढले मैं घर न पहुँचा, है मुझपे ये इल्ज़ाम अभी तक!
.
प्यार से, ‘पागल’ नाम दिया था, तूने जो इक रोज़ मुझे;
तुम तो बेशक़ भूले हो पर, सब लेते हैं वो नाम अभी तक!
.
तूने जो भेजा था ख़त मुझको, मेरे इक ख़त के जवाब में;
पढ़ा नहीं, पर रक्खा है, ‘अक्स’ मैंने वो पैग़ाम अभी तक!!…#अक्स

.

 

Exit mobile version