मैं ग़ज़ल बन किसी कागज़ पर बिखर जाऊँगी
तेरी आँखों में रहूँगी तो सँवर जाऊँगी
गर तेरे बदले मिले दुनिया मुकर जाऊँगी
ख्याल हूँ कैद न कर तू मुझे इन पलको में
खुशबू बन तेरा मै दामन छू गुज़र जाऊँगी
छूना मत तल्ख़ हक़ीकत भरे हाथों से
ख्वाब नाज़ुक हूँ मै आँखों का बिखर जाऊँगी
रोकते काश मुझे इक दफा यह हसरत थी
रंज लेकर यही मिट्टी में उतर जाऊँगी
तेरी आँखों से गिरी सूखे से पत्ते जैसी
बह के सैलाब में इस गम के किधर जाऊँगी
मेरे ज़ज्बात तो बहते हैं किसी दरिया से
मैं ग़ज़ल बन किसी कागज़ पर बिखर जाऊँगी
Bahut khoob
very nice
Thanks
शुक्रिया आपका
lajabaab…
हकीकत जब भी बया होती है,
गजल बन यूँ ही जवा होती है।
छूना मत तल्ख़ हक़ीकत भरे हाथों से
ख्वाब नाज़ुक हूँ मै आँखों का बिखर जाऊँगी…. waah bahut hi umdaa sher !
So sweet
bahut khoob..!
वाह बहुत सुंदर