मातृभाषा
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पतित पावनी हरित धरा पर
जिस दिन से आँखें खोली हैं।
कानों में शहद घोलती सी ये
अपनी मातृभाषा की बोली है।।
बचपन में वो अध्यापक जी
जब श्याम पटल पर लिखते थे।
कुछ लम्बे पतले गोल मोल
कितने अनजाने अक्षर दिखते थे।।
निज माता-पिता, बंधु भ्राता
मिल राह सभी ने दिखलाई।
शैशव की बातों के दम पर
हमने जीवन की बाज़ी खेली है।।
खो चुके हैं अब तक समय व्यर्थ,
दो जीवन को अब नया अर्थ।
निज भाषा का सम्मान करो
ये प्रगति पथ की हमजोली है।।
पतित पावनी हरित धरा पर
जिस दिन से आँखें खोली हैं।
कानों में शहद घोलती सी ये
अपनी मातृभाषा की बोली है।।
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@ deovarat- 14.09.2019
Nice
शुक्रिया nimisha
सुंदर रचना
जी धन्यवाद
वाह बहुत बढ़िया रचना
धन्यवाद महेश जी
Nice
🌹🙏🏻🌹
Good
Thanks ji
Good
Ji shukriya
Sunder rachna
Thanks ji
Good