मातृभाषा

***
पतित पावनी हरित धरा पर
जिस दिन से आँखें खोली हैं।
कानों में शहद घोलती सी ये
अपनी मातृभाषा की बोली है।।

बचपन में वो अध्यापक जी
जब श्याम पटल पर लिखते थे।
कुछ लम्बे पतले गोल मोल
कितने अनजाने अक्षर दिखते थे।।

निज माता-पिता, बंधु भ्राता
मिल राह सभी ने दिखलाई।
शैशव की बातों के दम पर
हमने जीवन की बाज़ी खेली है।।

खो चुके हैं अब तक समय व्यर्थ,
दो जीवन को अब नया अर्थ।
निज भाषा का सम्मान करो
ये प्रगति पथ की हमजोली है।।

पतित पावनी हरित धरा पर
जिस दिन से आँखें खोली हैं।
कानों में शहद घोलती सी ये
अपनी मातृभाषा की बोली है।।
***
@ deovarat- 14.09.2019

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

Responses

+

New Report

Close